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पैसे की गुलामी (Slavery of Money)

जीवन जीने के लिए एक महत्वपूर्ण चीज़ पैसा है जिसके बिना आज के समय में जीवन जीने की कल्पना करना भी असंभव है।  आज हम एक ऐसी दुनिया में रहते है जहाँ हमें हर जरुरी चीज के लिए बाज़ार पर निर्भर रहना पड़ता है।  पहले के समय में ऐसा नहीं था, लोग बहुत सारी जरुरी चीज़े खुद ही उगाते थे या अपने समान को बदल कर दूसरा समान ले लेते थे।  आज हम हर चीज़ के लिए केवल बाज़ार पर ही आश्रित है और बाज़ार में पैसा चलता है। दुनिया भर की सरकारे भी ऐसी आर्थिक व्यवस्था को बढ़ावा दे रही है जिसमें बाजारवाद को बढ़ावा मिले।  इस कारण पैसे का महत्व बहुत ही अधिक बढ़ता जा  रहा है।  इस आर्थिक व्यवस्था को बढ़ाने और चलाने के लिए लोगों को उपभोक्ता की तरह इस्तेमाल किया जाता है।  पैसे के इर्द गिर्द इतनी जटिलतायें बुन दी जाती है कि एक इंसान पूरी जिंदगी पैसे को कमाने में और इसकी चिंता में नष्ट देता है। पैसा का हमेशा ही जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है पर आज के समय में यह बहुत ही अहम स्थान पर पहुंच गया है और इसके बिना जीवन जीने की कल्पना भी नहीं की जा सकती।  आज लोग हर छोटी और बड़ी चीज़ के लिए बाजार पर निर्भर है और उसके लिए पैसा चाहिए।  इ

कलयुग के नकली संत (A modern fake saint)

भारत के समाज में संतों का एक विशेष स्थान है और इसी लिए हम हिन्दुस्तान में इतने सारे संतों को पाते है। यह संत हर धर्म में मौजूद है और लोगों का इन पे गहरा विश्वास भी है। हिन्दू समाज में तो इन संतो की भरमार है। मैं संतों के ख़िलाफ़ नहीं हूँ क्योंकि इन संतों ने हिन्दू समाज की बेहतरी के लिए बहुत अच्छे काम किये है। पर पिछले कुछ समय से हम इन संतों के बारे में बड़ी ही अशोभनीय  खबरें सुन रहे है। इस की जीती जागती मिसाल बापू आशाराम का मामला है जिसने पुरे देश को शर्मसार कर दिया। आज कई संत लोगों के अंधे विश्वाश का गलत फ़ायदा उठा रहे है अपने गलत कामों को पूरा करने के लिए और धन सम्पति हासिल करने के लिए। जितना पैसा और सम्पति यह संत कुछ सालों में ही एकत्रित कर लेते है, उतनी शायद बड़े-बड़े कारोबारी भी पूरी जिंदगी में हासिल नहीं कर पाते हैं। आज आस्था के नाम पर एक व्यापार शुरू हो गया है, और बढ़ता ही जा रहा है। कुछ ही समय में एक ग़रीब और असफ़ल व्यक्ति, एक अमीर और प्रसिद्ध संत बन जाता है। राधे माँ और निर्मल बाबा , एक बड़ी मिसाल है कि कैसे एक हरा हुआ इंसान कुछ ही समय में दूसरों के दुःख दूर करने लगता है औ

बढ़ती धार्मिक असहनशीलता

मुझे एक बात का बहुत दुःख है कि आज़ादी के इतने साल बाद भी हम दूसरे धर्मो के साथ प्यार से रहना नहीं सीख पाए। आज भी कुछ धर्म के ठेकेदार लोगों को अपने हिसाब से ढालने में सफल हो रहे है। इन धर्मो के ठेकेदारों का केवल एक मक़सद होता है हमें बाँट कर हम पे राज करना। आज के सभ्य और शिक्षित समाज से हम अपेक्षा कर सकते हैं कि वह इस छोटी सोच से ऊपर उठ कर एक ऐसे समाज को बनाएगें जिसमें सभी लोग दूसरें धर्मो का सम्मान करेंगें। आज भारत के पीछे रहने का प्रमुखः कारण धार्मिक कट्टरपंथता है। में धर्म का विरोधी नहीं हूँ पर में धर्म के नाम पर अंधविश्वास और कट्टरवाद को बढ़ाने के ख़िलाफ़ हूँ। धर्म के केवल एक मकसद है, हमें आध्यात्मिक ज्ञान का रास्ता दिखाना और एक अच्छे व्यक्ति बनाना , पर आज इस का बिलकुल उलटा हो रहा है। आध्यात्मिक ज्ञान तो बहुत पीछे छूट गया है और अंधविश्वास हम पर छा गया है। इस अन्धविश्वास और कट्टरवाद के कारण लोगों में नफ़रत फैल रही है, और लोगों का लोगों के ऊपर से विश्वास उठ रहा है। अगर हम एक अच्छे समाज की रचना करना चाहते है तो हमें धार्मिक सहनशीलता को बढ़ावा देना होगा। हमें यह सही मायने में समझ