भारत के समाज में संतों का एक विशेष स्थान है और इसी लिए हम हिन्दुस्तान में इतने सारे संतों को पाते है। यह संत हर धर्म में मौजूद है और लोगों का इन पे गहरा विश्वास भी है। हिन्दू समाज में तो इन संतो की भरमार है। मैं संतों के ख़िलाफ़ नहीं हूँ क्योंकि इन संतों ने हिन्दू समाज की बेहतरी के लिए बहुत अच्छे काम किये है। पर पिछले कुछ समय से हम इन संतों के बारे में बड़ी ही अशोभनीय खबरें सुन रहे है। इस की जीती जागती मिसाल बापू आशाराम का मामला है जिसने पुरे देश को शर्मसार कर दिया।
आज कई संत लोगों के अंधे विश्वाश का गलत फ़ायदा उठा रहे है अपने गलत कामों को पूरा करने के लिए और धन सम्पति हासिल करने के लिए। जितना पैसा और सम्पति यह संत कुछ सालों में ही एकत्रित कर लेते है, उतनी शायद बड़े-बड़े कारोबारी भी पूरी जिंदगी में हासिल नहीं कर पाते हैं। आज आस्था के नाम पर एक व्यापार शुरू हो गया है, और बढ़ता ही जा रहा है। कुछ ही समय में एक ग़रीब और असफ़ल व्यक्ति, एक अमीर और प्रसिद्ध संत बन जाता है। राधे माँ और निर्मल बाबा, एक बड़ी मिसाल है कि कैसे एक हरा हुआ इंसान कुछ ही समय में दूसरों के दुःख दूर करने लगता है और करोड़ों की सम्पति अर्जित कर लेता है।
आज पैसा इस कदर सब पे हावी हो रहा है कि कोई भी व्यक्ति (चाहे कैसा भी उसका अतीत रहा हो) एक ऊँचा संत बन जाता है। सचिन दत्ता के मामले में हमने यही देखा कि कैसे एक ग़लत कार्य में लिप्त रहने वाला व्यक्ति महामंडलेश्वर बन गया। एक सच्चा संत वह होता है जो आडंबर, लालच, मोह और अहम से दूर रहते हुए एक स्वछ जीवन जीता है। कल पुरे भारत नें राधे माँ की कुछ तस्वीरें देखी और इन तस्वीरों में राधे माँ कुछ इस डंग से नज़र आई, जैसा हम एक संत से अपेक्षा नहीं रखते है।
लोगों को भी कहीं न कहीं यह समझना होगा कि हम सीधे भी परमात्मा से जुड़ सकते है और इसके लिए हमें पाखण्डी संतो की जरुरत नहीं है। अगर हमने इन नकली संतो का वहिष्कार नहीं किया तो यह हमारे समाज को खोखला कर देंगें। इन नलकी संतो पर अरबों रुपये खर्च करने की बजाए हम करोड़ो गरीबों का भला कर सकते है। इसके लिए हम इंसानों को भी अपने आप से ऊपर उठ कर सोचना होगा और अंधविश्वास से परे जाना होगा।
आज कई संत लोगों के अंधे विश्वाश का गलत फ़ायदा उठा रहे है अपने गलत कामों को पूरा करने के लिए और धन सम्पति हासिल करने के लिए। जितना पैसा और सम्पति यह संत कुछ सालों में ही एकत्रित कर लेते है, उतनी शायद बड़े-बड़े कारोबारी भी पूरी जिंदगी में हासिल नहीं कर पाते हैं। आज आस्था के नाम पर एक व्यापार शुरू हो गया है, और बढ़ता ही जा रहा है। कुछ ही समय में एक ग़रीब और असफ़ल व्यक्ति, एक अमीर और प्रसिद्ध संत बन जाता है। राधे माँ और निर्मल बाबा, एक बड़ी मिसाल है कि कैसे एक हरा हुआ इंसान कुछ ही समय में दूसरों के दुःख दूर करने लगता है और करोड़ों की सम्पति अर्जित कर लेता है।
आज पैसा इस कदर सब पे हावी हो रहा है कि कोई भी व्यक्ति (चाहे कैसा भी उसका अतीत रहा हो) एक ऊँचा संत बन जाता है। सचिन दत्ता के मामले में हमने यही देखा कि कैसे एक ग़लत कार्य में लिप्त रहने वाला व्यक्ति महामंडलेश्वर बन गया। एक सच्चा संत वह होता है जो आडंबर, लालच, मोह और अहम से दूर रहते हुए एक स्वछ जीवन जीता है। कल पुरे भारत नें राधे माँ की कुछ तस्वीरें देखी और इन तस्वीरों में राधे माँ कुछ इस डंग से नज़र आई, जैसा हम एक संत से अपेक्षा नहीं रखते है।

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