
यह केवल एक स्कूल की बात नहीं है, आज हर स्कूल में यही सब हो रहा है। हर स्कूल एक मोटी फीस तो लेना चाहता है पर अपने पैसे बचाने के लिए बच्चों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करते है। आज स्कूल चलाना एक व्यवसाय मात्र बन कर रह गया, जहां अधिक से अधिक मुनाफ़ा कमाने की कोशिश की जाती है। लोग अपनी खून पसीने की कमाई से बड़ी मुश्किल के साथ अपने बच्चों की फीस अदा करते है, पर वह यह नहीं जानते कि उनका बच्चा स्कूल में सुरक्षित नहीं है।
हमारी सरकारें भी तभी कुछ समय के लिए हरकत में आती है जब एक बड़ा हादसा हो चूका होता है और एक मासूम जिंदगी इस दुनिया को अलविदा कह चुकी होती है। आज की हिंुदस्तान की स्कूल व्यवस्था को जंग लग चूका है और यह अंदर से खोखली हो गयी है। हम स्कूलों के बाहरी दिखावे में आकर अपने बच्चों को इन स्कूलों में भेज तो देते है, पर जब असलियत हमारे सामने आती है तो दिल दुखी होता है। स्कूलों के व्यवसायी कारण में हमारी सरकारों का भी बहुत बड़ा योगदान है क्योंकि वह भी इन स्कूलों के साथ सख्ती से पेश नहीं आती।
एक बेहतर समाज के विकास के लिए हमें किफ़ायती और बेहतर शिक्षा की जरुरत है। पर हमारे सरकारी स्कूल तो केवल खुद को बचाने की लड़ाई तक सिमित रह गए है। सरकारी स्कूलों की दयनीय हालत देख कर आज कई भी माता-पिता अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में नहीं भेजना चाह्ता। एक अच्छी शिक्षा के बिना एक अच्छे समाज की कल्पना करना भी व्यर्थ है। पर दुःख की बात यह है, हम खुद ही अच्छी शिक्षा को समाप्त कर दिखावे वाली हलकी शिक्षा को बढ़ावा दे रहे है।
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